जिंदगी इस तरह से लगने लगी रंग उड़ जाएँ जो दीवारों से
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा ,ज़ख्म दिखने लगे दरारों से
अबतलक सिर्फ तुझको देखा था
आज तू क्या है ये भी जान लिया
आज जब गौर से तुझे देखा
हम गलत थे कहीं ये मान लिया
अब छुपाने को अपना कुछ ना रहा ,ज़ख्म दिखने लगे दरारों से
अबतलक सिर्फ तुझको देखा था
आज तू क्या है ये भी जान लिया
आज जब गौर से तुझे देखा
हम गलत थे कहीं ये मान लिया
No comments:
Post a Comment